अरे भइया, धतूरा का नाम सुना तो होगा। गाँव-गाँव में ये झाड़ सा अपने आप उग आता है। बड़े-बुज़ुर्ग हमेशा कहते रहे – “धतूरा दूर से देखो, पास से मत खाओ, वरना खोपड़ी घूम जाएगी।” सही भी है, क्योंकि ये पौधा जहरीला है। पर यही धतूरा भगवान भोलेनाथ का प्रिय फूल है, और पुराने जमाने के वैद्य इसी से दमा, खाँसी, और दर्द तक ठीक कर देते थे। यानी जो चीज़ एक तरफ मौत बन सकती है, वही दूसरी तरफ दवा भी है।
धतूरे को पहचान
धतूरा किसी बाग-बगीचे का पौधा नहीं है, ये तो खेत-खलिहान, नाले-किनारे, बाड़-बंदी के पास खुद-ब-खुद उग जाता है। इसके पत्ते मोटे और बड़े-बड़े, जिनसे हल्की-सी गंध आती है। फूल तुरही जैसे लंबे और सफेद या बैंगनी रंग के होते हैं। इसके फल में काँटे ही काँटे होते हैं, अंदर ढेर सारे काले बीज। और यही बीज सबसे खतरनाक माने जाते हैं।
धार्मिक महत्व
अब सुनो, धतूरा का भगवान शिव से बड़ा नाता है। सावन में जब भोले बाबा को जल चढ़ाते हैं तो बेलपत्र, भांग और साथ में धतूरा भी जरूर चढ़ाया जाता है। गाँव के बुज़ुर्ग कहते हैं – “भोले को चढ़ाओ धतूरा, मिटे सारे दुख-दर्द का झंझट।” पूजा-पाठ से लेकर तांत्रिक अनुष्ठानों में भी इसका बड़ा काम है। लोग मानते हैं कि धतूरा घर में हो तो बुरी नज़र और टोना-टोटका पास नहीं आता।
धतूरे में क्या होता है
अब इसमें क्या चीज़ है जो इसे खास बनाती है? धतूरे में ऐसे तेज़ असर वाले तत्व होते हैं – एट्रोपीन, स्कोपोलामीन और हायोसायमीन। नाम चाहे भारी हों, मगर असर बड़ा जबरदस्त। सही हाथों में दवा, गलत हाथों में जहर।
धतूरे के फायदे
(1) दमा और सांस की तकलीफ़
गाँव में पहले इनहेलर-वहलर कहाँ थे? दमा के रोगी को धतूरे की सूखी पत्ती जलाकर उसका धुआँ सूँघाया जाता था। साँस की नली खुल जाती थी और जान में जान आ जाती थी।
(2) त्वचा की बीमारियाँ
फोड़े-फुंसी या खुजली हो तो धतूरे की पत्तियों का लेप लगाया जाता था। ठंडी तासीर से आराम मिलता था और कीड़े-मकोड़े का असर भी मिटता था।
(3) दर्द भगाने में
जोड़ या मांसपेशियों में दर्द हो तो तेल में धतूरे का अर्क डालकर मालिश की जाती थी। गाँव में लोग कहते थे – “धतूरा वाला तेल, हड्डी-गांठ सब खेल।”
(4) दिमाग़ और नसों पर असर
नींद न आए, चिड़चिड़ापन हो, या दिमाग़ ज्यादा गरम हो – पुराने वैद्य धतूरे से बनी दवा थोड़ी-थोड़ी देते थे। इससे नसें ढीली पड़ती थीं और नींद आ जाती थी।
(5) सूजन और कीड़े-मकोड़े से बचाव
धतूरे में सूजन घटाने और कीटाणु मारने की ताक़त है। इसीलिए घाव या सूजन में भी इसका लेप लगाया जाता था।
नुकसान और सावधानियाँ
अब सुनो, जितना फायदा है उतना नुकसान भी।
- ज़रा भी ज्यादा हो गया तो उल्टी, चक्कर, आँखों के आगे अँधेरा।
- बच्चे और गर्भवती औरतें इसके पास भी न जाएँ।
- खुद से कभी सेवन मत करना, वरना इलाज की जगह मुसीबत मिल जाएगी।
- बड़ी मात्रा में खा लिया तो सीधा मौत भी हो सकती है।
लोक बातें और किस्से
गाँव में लोग धतूरे को नज़रबट्टू मानते थे। कहते हैं – “घर के आँगन में धतूरा, भूत-प्रेत का नाश।” कहीं-कहीं साँप के काटने पर झाड़-फूँक वाले धतूरे की जड़ से मंत्र फूँकते थे। अब विज्ञान इसे सही माने या न माने, मगर गाँव की मान्यता आज भी है
अब जमाना बदल गया, मगर धतूरा आज भी काम आ रहा है। दवा कंपनियाँ इसकी नाप-तोलकर दवा बनाती हैं। दर्द कम करने, नसों के रोग, और यहाँ तक कि बेहोशी की दवा में भी इसका इस्तेमाल होता है। मतलब धतूरा है तो जहरीला, लेकिन काबिल हाथों में दवा भी है
धतूरा एक अजीब पौधा है। एक तरफ़ मौत, दूसरी तरफ़ जीवन। शिवजी को चढ़ाओ तो पुण्य, वैद्य की देखरेख में लो तो दवा, और बिना समझे खा लिया तो आफ़त। इसलिए याद रखो – “धतूरा साधु का, भोलेनाथ का, और वैद्य का है; आम आदमी का खिलौना नहीं।”