शहतूत को मलबेरी के नाम से भी जाना जाता है। मध्य भारत में यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। वनों के अलावा इसे सड़कों के किनारे और बाग-बगीचों में भी देखा जा सकता है। इसका वानस्पतिक नाम मोरस अल्बा है। शहतूत को अंग्रेजी में मूलबेरी और आम बोलचाल की भाषा में शहतूत कहा जाता है। मई के महीने में शहतूत पूरी तरह से पक जाता है और पोषक तत्वों से भरपूर होने के साथ ही यह बहुत स्वादिष्ट होता है। शहतूत का फल खाने में जितना स्वादिष्ट होता है उतना सेहतमंद भी. आयुर्वेद में शहतूत के ढेरों फायदों का बखान है. शहतूत में पोटैशियम, विटामिन ए और फॉस्फोरस प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. आमतौर पर शहतूत दो प्रकार के होते हैं. शहतूत एक ऐसा फल है जिसे कई लोग कच्चा ही खाना पसंद करते हैं।
शहतूत से पेशाब के रोग और कब्ज़ दूर हो जाते हैं। शहतूत का रस पीने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। इसका रस सिर में लगाने से बाल घने होते हैं।
फल के अलावा शहतूत की पत्तियां भी बहुत फायदेमंद होती हैं और यह ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर बनाने में मदद करती हैं। शहतूत की पत्तियों और फलों में रिज्वेराट्रोल की मात्रा पायी जाती है जो रक्त के प्रवाह को स्टीमूलेट करता है और ब्लड सर्कुलेशन को तेज करता है।
शहतूत के रस में कलमीशोरा को पीसकर नाभि के नीचे लेप करने से पेशाब मे धातु ना बंद हो जाती है।
शहतूत खाने से खून से संबंधित दोष समाप्त होते हैं। डाँग-गुजरात के आदिवासियों के अनुसार शरीर में किसी भाग में सूजन होने पर उस पर शहतूत के रस और शहद को मिलाकर लेप लगाने से सूजन में काफी राहत मिलती है।